वैसे तो
 हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता का स्थान पहले ही सर्वोच्च रहा है, किन्तु आजकल वैश्वीकरण के प्रभाव में हम विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय दिवसों को भी ख़ुशी-ख़ुशी सेलिब्रेट करते हैं. वैसे भी हमारी संस्कृति हर तरह के सद्विचारों और मूल्यों का स्वागत करती रही है और इस लिहाज से प्रत्येक वर्ष जून के तीसरे रविवार को 'इंटरनेशनल फादर्स डे' (International father's day) का दिन प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है. आखिर, हर कोई किसी न किसी की 'संतान' तो होता ही है और इसलिए उसका फ़र्ज़ बनता है कि वह अपने पिता के प्रति अपने जीवित रहने तक सम्मान का भाव रखे, ताकि अगली पीढ़ियों में उत्तम संस्कार का प्रवाह संभव हो सके. अक्सर गलतियों पर टोकने, बाल बढ़ाने, दोस्तों के साथ घूमने और टी.वी. देखने के लिए डांटने वाले पिता की छवि शुरु में हम सबके बालमन में हिटलर की तरह रहती है. लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हम समझते जाते हैं कि हमारे पिता के हमारे प्रति कठोर व्यवहार के पीछे उनका प्रेम ही रहता है. बचपन से एक पिता खुद को सख्त बनाकर हमें कठिनाइयों से लड़ना सिखाता है तो अपने बच्चों को ख़ुशी देने के लिए वो अपनी खुशियों की परवाह तक नहीं करता. एक पिता जो कभी मां का प्‍यार देते हैं तो कभी शिक्षक बनकर गलतियां बताते हैं तो कभी दोस्‍त बनकर कहते हैं कि 'मैं तुम्‍हारे साथ हूं'. इसलिए मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि पिता वो कवच हैं जिनकी सुरक्षा में रहते हुए हम अपने जीवन को एक दिशा देने की सार्थक कोशिश करते हैं. कई बार तो हमें एहसास भी नहीं होता कि हमारी सुविधाओं के लिए हमारे पिता ने कहाँ से और कैसे व्यवस्था की होती है. यह तब समझ आता है, जब कोई बालक पहले किशोर और फिर पिता बनता है।

जाहिर है, अपने बच्चे के लिए तमाम कठिनाईयों के बाद भी पिता के चेहरे पर कभी शिकन नहीं आती. शायद इसीलिए कहते हैं कि पिता ईश्वर का रूप होते हैं, क्योंकि खुद सृष्टि के रचयिता के अलावा दुसरे किसी के भीतर ऐसे गुण भला कहाँ हो सकते हैं. हमें जीवन जीने की कला सिखाने और  अपना सम्पूर्ण जीवन हमारे सुख के लिए न्योछावर कर देने वाले पिता के लिए वैसे तो बच्चों को हर समय तत्पर रहना चाहिए, लेकिन अगर इतना संभव न हो तो, कम से कम साल में एक खास दिन (International father's day) तो हो ही! उनके त्याग और परिश्रम को चुकाया नहीं जा सकता, लेकिन कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं कि उनके प्रति 'कृतज्ञ' बने रहे. हालाँकि 'फादर्स डे' मनाना हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं रहा है और मूल रूप से यह यूएस में जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है, लेकिन आधुनिक ज़माने की संस्कृति ने हमें 'फादर्स डे' के रूप में अगर यह अवसर दिया है, तो हमें अच्छी चीजों और परम्परों का धन्यवाद कहना ही चाहिए! इससे हम अपनी भावनाएं जो चाहकर भी नहीं कह पाते, वह इस अवसर पर कह सकते हैं. उन्हें वो अपनापन महसूस करा सकते हैं जिससे वो अपने आपको बुढ़ापे में सुरक्षित महसूस कर सकें. उनको ये एहसास करा सकते हैं कि 'आज मैं जो भी हूं' वो आपके बिना संभव नहीं था. जाहिर है, हर मनुष्य के भीतर फीलिंग होती है और अगर किसी को उसकी संतान शुभकामनाएं दे तो उसे अच्छा ही लगेगा.


आप जितने भी सफल व्यक्तियों को देखेंगे, तो उनके जीवन की सफलता में उनके पिता का रोल आपको नज़र आएगा. उन्होंने अपने पिता से प्रेरणा ली होती है और उनको आदर्श माना होता है. इसके पीछे सिर्फ यही कारण होता है कि कोई व्यक्ति लाख बुरा हो, लाख गन्दा हो, लेकिन अपनी संतान को वह 'अच्छी बातें और संस्कार' ही देने का प्रयत्न करता है. ऐसे कई उदाहरण हैं कि कोई व्यक्ति नालायक होता है, शराबी होता है, जुआरी होता है लेकिन ज्योंही वह पिता बनता है, अपनी गन्दी आदतें इसलिए छोड़ देता है ताकि उसके बच्चों पर बुरा असर न पड़े. हालाँकि, यह संसार बहुत बड़ा है और इसमें लोग भी भिन्न प्रकार के हैं. पर यह कहा जा सकता है कि अपने बच्चे के लिए हर पिता बेहतर कोशिश करता है, अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा! इसलिए वह तारीफ़ के काबिल तो होता ही है. अपने पिता से अफ़सोस और शिकायतें तो सिर्फ वो लोग करते हैं जिन्होंने जिंदगी में अपने आप को साबित नहीं किया वरना हर पिता का जीवन सीखने योग्य होता है. पिता ही दुनिया का एक मात्र शख्‍स है, जो चाहते है कि उसका बच्‍चा उससे भी ज्‍यादा तरक्‍की करे, उससे भी ज्‍यादा नाम कमाये. इसके लिए वह कई बार सख्त रूख भी अख्तियार करते हैं, क्योंकि जीवन में आगे बढ़ने के लिए 'अनुशासन' का सहारा लेना ही पड़ता है. 

 
हालाँकि, बदलते ज़माने के साथ पिता का स्वरुप भी बदला है और हमेशा गम्भीर और कठोर दिखने वाले पिता की जगह अब अपने बच्चों के संग खेलने और मस्ती करने वाले पिता ने ले लिया है. समय के साथ बदलाव तो स्वाभाविक हैं, लेकिन पिता के कर्त्तव्य में कोई बदलाव नहीं आएगा और यही हमारी संस्कृति रही है. बदलते ज़माने और रोजगार की जरूरतों की वजह से आज हम में से कई अपने माता-पिता से दूर हो गए हैं, ऐसे में हम उन बुजुर्ग कदमों को चाह कर भी सहारा नहीं दे पा रहे हैं, उनका अकेलापन नहीं दूर कर पा रहे हैं, तो मन में बस एक टीस भर जाती है अपनों के लिए, जो बेहद बेचैन करती है. ऐसे में हमें विभिन्न अवसरों, त्यौहारों पर उन्हें समय अवश्य ही देना चाहिए, बेशक वह अवसर फादर्स डे ही क्यों न हो! हालाँकि, आज संयुक्त परिवारों के बिखण्डन से बुजुर्ग माँ-बाप की समस्याएं कहीं ज्यादा विकराल हो गयी हैं. 'बागवान' जैसी फिल्में हम देख ही चुके हैं और यह समाज की सच्चाई सी बन गयी है, जहाँ बच्चे बस अपने माँ-बाप की संपत्ति से मतलब रखते हैं, लेकिन उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा कर देते हैं. जाहिर है, संस्कार कहीं न कहीं बिगड़े हैं और इसे सुधारने का प्रयत्न करना ही 'फादर्स डे' की सार्थकता कही जाएगी, अन्यथा फिर यह अन्य 'पश्चिमी औपचारिकताओं' की तरह 'औपचारिकता' बन कर रह जायेगा.।।

आपकी आवाज मेरा सुकून है, 
आपकी खामोशी, एक अनकहा संबल ।

आपके प्यार की खुशबू जैसे, 
महके सुगंधित चंदन।

आपका विश्वास,मेरा खुद पर गर्व ।
दुनिया को जीत लूं, फिर नहीं कोई हर्ज ।

आपकी मुस्कान, मेरी ताकत, 
हर पल का साथ, खुशनुमा एहसास

दुनिया में सबसे ज्यादा, 
आप ही मेरे लिए खास

पापा, 
आपकी शुक्रगुजार है, 
मेरी हर एक सांस …. ।।

 


“माँ की ममता को तो, सब ने ही स्वीकारा है
पर पिता की परवरिश को, कब किसने ललकारा है!!
मुश्किलों की घंडियों में अक्सर, मेरे साथ खड़े थे वो
मेरी गलतिया थी फिर भी, मेरी खातिर लड़े थे वो!!
कमियों की अहसास, मुझको कभी तो हो न पायी 
कपकपा कर सोते थे वो, मेरे ऊपर थी रजाई !!
माँ की गोदी की गर्माहट, के बराबर उनकी थपकी
कंधे उनका बिस्तर मरी, आंखे हलकी सी जो झपकी!!
उनके होसलो ने कभी न, आँखे नम होने दिए है
जितने थी मेरी जरूरत, सबको तो पूरी किया है!!
उनकी लाड में जो पाया, थोड़ी कड़वापन सही 
मेरी खातिर मुझे डाटा, था वही बचपन सही!!
जिंदगी की दौड़ में अब, अपने पारों पर खड़े 
उनके जज़्बों की बदौलत, मुस्किलो से हम लड़े!!
सर पे उनका साया जब तक, चिंता न डर है कोई!!
उनके कंधो की बदौलत बढ़ रही है जिंदगी !!



पापा मेरी नन्ही दुनिया, तुमसे मिल कर पली-बढ़ी
आज तेरी ये नन्ही बढ़कर, तुझसे इतनी दूर खड़ी

तुमने ही तो सिखलाया था, ये संसार तो छोटा है
तेरे पंखों में दम है तो, नील गगन भी छोटा है

कोई न हो जब साथ में तेरे, तू बिलकुल एकाकी है
मत घबराना बिटिया, तेरे साथ में पप्पा बाकी हैं

पीछे हटना, डरना-झुकना, तेरे लिए है नहीं बना
आगे बढ़ कर सूरज छूना, तेरी आंख का है सपना

तुझको तो सूरज से आगे, एक रस्ते पर जाना है
मोल है क्या तेरे वजूद का दुनिया को बतलाना है

आज तो पापा मंजिल भी है, दम भी है परवाजों में
एक आवाज नहीं है लेकिन, इतनी सब आवाजों में

सांझ की मेरी सैर में हम-तुम, साथ में मिल कर गाते थे
कच्चे-पक्के अमरूदों को, संग-संग मिल कर खाते थे
उन कदमों के निशान पापा, अब भी बिखरे यहीं-कहीं
कार भी है, एसी भी है, पर अब सैरों में मज़ा नहीं

कोई नहीं जो आंसू पोछें, बोले पगली सब कर लेंगे
पापा बेटी मिलकर तो हम, सारे रस्ते सर कर लेंगे

इतनी सारी उलझन है और पप्पा तुम भी पास नहीं
ये बिटिया तो टूट चुकी है, अब तो कोई आस नहीं

पर पप्पा ! तुम घबराना मत, मैं फिर भी जीत के आउंगी
मेरे पास जो आपकी सीख है, मैं उससे ही तर जाऊंगी

फिर से अपने आंगन में हम साथ में मिल कर गाएंगे
देखना अपने मौज भरे दिन फिर से लौट के आएंगे।।




आज भी याद है बचपन के वो पल ,
जहाँ आँखों मे सपने और न ही दिलो मे छल था |
जहाँ पापा ने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया,
वहीं उन्हीं के दिये आत्मविश्वास ने,
गिरते से भी उठना सिखाया | 
हाथो मे बैग लेकर स्कूल जाना, 
और अपनी मीठी-मीठी बातों से सबको लुभाना |
वहीं घर आकर पापा को रिझाना, 
और प्यार से उनका, गले से मुझे लगाना |

कभी माँ की डॉट से पापा के पीछे छिप जाना, 
तो खुद उनकी डॉट सहकर मुझे माँ से बचाना |
होली दिवाली पर अपने कपड़े भूल कर हमको नए कपडे दिलाना,
और खिलोनों की फरमाइश पर अपनी सेविंग से पैसे जुटाना |
जहाँ माँ ने संस्कारो मे रहना सिखाया,
वहीं पापा ने मुश्किलों से लड़ना सिखाया | 
वो मेरा पापा से बार बार ऐसे वैसे प्रश्न पूछे जाना,
और मेरी नटखट बातो पर पापा का खिलखिलाकर हंस जाना |
लोग कहते है बेटी माँ का साया होती है,
पर जरुरी तो नहीं, वो हमेशा माँ जैसे ही होती है | 
अगर बेटी माँ का साया होती है,
तो वहीं बेटी पापा की भी परछाई होती है |
जो अपनी सारी फ़र्माइशों को पापा से करती है 
अपनी बात कहने से कभी ना डरती है ||
ऐसी ही बेटियाँ पापा की राजकुमारियाँ होती है,
जो हमेशा उनकी सासों में बसती है..||
आज भी याद है बचपन के वो पल…..

[तुम मेरे डैडी
तुम मेरी माँ हो
तुम मेरा दिल हो
तुम मेरी जान हो]

बचपन की डोर का
ये धागा तोड़ के
डॅडी कभी मुझे
ना जाना छोड़ के
डॅडी कभी मुझे
ना जाना छोड़ के

मेरे लिए तू कितना
दर्द उठाता है
मेरे लिए तू कितना
दर्द उठाता है

देख के तुझको
दिल को मेरे चैन आता है.

तुझको ना देखु तो
जी घबराता है

देख के तुझको
दिल को मेरे चैन आता है
देख के तुझको
दिल को मेरे चैन आता है

ये कैसा रिश्ता है
कैसा नाता है
ये कैसा रिश्ता है
कैसा नाता है

देख के तुझको
दिल को मेरे चैन आता है,।।

  Great person of the Universe

 ,Not anyone ,it's only  our father..🤗🤗